इजरायल और अमेरिका में क्यों है इतनी खास दोस्ती

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इजरायल और अमेरिका में क्यों है इतनी खास दोस्ती

सात अक्टूबर को हमास के हमले के चंद दिन बाद ही, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तेल अवीव पहुंच कर इसराइल के प्रति अमेरिका की एकजुटता का स्पष्टीकरण किया। उन्होंने हमास को ‘शैतान’ कहा और इसराइल के साथ खड़ा रहने का ऐलान किया। वे कहते हैं कि अमेरिका हमेशा इसराइल के साथ है और उसे हर मदद मिलेगी।

इजरायल और अमेरिका में क्यों है इतनी खास दोस्ती
इजरायल और अमेरिका में क्यों है इतनी खास दोस्ती

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नवंबर की शुरुआत में, अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने इसराइल के लिए 14.5 अरब डॉलर की सैन्य सहायता के प्रस्ताव को मंजूरी दी, और इसके साथ ग़ज़ा में सीजफायर को लेकर भी अमेरिका इसराइल के रुख का समर्थन कर रहा है। अमेरिका के समर्थन से इसराइल के लिए कोई नई बात नहीं है। यह सदियों से चली आ रही दोस्ती का एक हिस्सा है, लेकिन इसका राज़ क्या है?

इसराइल और अमेरिका के बेहतरीन रिश्तों का इतिहास कितने पुराने हैं, और इसके पीछे क्या कारण हैं जो अमेरिका हमेशा इसराइल के साथ खड़ा होता है? इस सवाल का उत्तर ढूंढ़ने के लिए हमें इन दोनों देशों के इतिहास में एक नजर डालनी होगी।

इसराइल और अमेरिका के संबंध कितने पुराने हैं? आखिर वो कौन से राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक समीकरण हैं, जिनकी वजह से अमेरिका हमेशा इसराइल के हर कदम को सही करार देता है?

अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रुमैन दुनिया के पहले ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने सबसे पहले इसराइल को मान्यता दी थी। यह सबसे पहला कदम था, जिससे इसराइल को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।

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इसराइल को इतनी जल्दी अमेरिकी मान्यता क्यों मिल गई? इसके पीछे का इतिहास देखने से हमें यह समझ में आता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध ने आकार लेना शुरू किया था। इस दौरान, अरब देश अपने तेल भंडारों और समुद्री रास्तों की वजह से इलाके में दो विश्वशक्तियों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान पर आ गए थे।

यूरोपीय ताकतें कमजोर हो रही थीं और अमेरिका अरब जगत में सत्ता संघर्ष का बड़ा बिचौलिया बन रहा था। तेल रिजर्व के साथ, अरब जगत में अमेरिका के हित बढ़ गए थे और इसलिए उन्हें अरब देशों को नियंत्रित करने के लिए इसराइल की जरूरत थी।

इसराइल के अस्तित्व के ऐलान के मात्र 11 मिनटों के भीतर अमेरिकी मान्यता मिल गई और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रुमैन दुनिया के पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने सबसे पहले इसराइल को मान्यता दी।

इसके पीछे यह मान्यता था कि अमेरिका के लिए इसराइल एक महत्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक उपाय था, जिसका उपयोग वे अपने राष्ट्रिय हितों के लिए कर सकते थे। इस दोस्ती का इतिहास हमें दिखाता है कि अमेरिका और इसराइल के बीच के सम्बंध न केवल दिप्लोमेसी और राजनीतिक विचारों से जुड़े हैं, बल्कि इनमें आर्थिक हित भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इसराइल और अमेरिका के बीच के सम्बंध एक दौर से लेकर आज तक मजबूती से बने हुए हैं, और इसे दुनिया के सामने एक ऐतिहासिक दोस्ती का राज़ कह सकते हैं।

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अमेरिका और इसराइल के रिश्तों का इतिहास

अमेरिका और इसराइल के रिश्तों का इतिहास बहुत गहरा और संघर्षपूर्ण रहा है. यह दो देशों के बीच एक दिलचस्प संघर्ष की कहानी है, जिसमें समर्थन और असमर्थन की स्थितियाँ बदलती रही हैं.

आरंभ में, अमेरिका ने इसराइल के गठन से पहले ही इसे समर्थन दिया था. इसराइल के अस्तित्व को मान्य करने में अमेरिका का आग्रह था, लेकिन यह संबंध बदलते गए.

1956 में स्वेज नहर के मामले में, जब इसराइल ने फ्रांस और ब्रिटेन के साथ मिलकर कार्रवाई की, तो अमेरिका नाराज हो गया. अमेरिका ने इसराइल को धमकी दी कि अगर वह कब्जा किए गए इलाकों को खाली नहीं करता, तो उसकी मदद रोक दी जाएगी.

सोवियत यूनियन ने भी इसराइल को धमकी दी कि अगर वह पूरी तरह से इलाकों से पीछे नहीं हटता, तो उस पर मिसाइलों से हमला किया जाएगा. इस प्रेशर के बाद, इसराइल को इन इलाकों से पीछे हटना पड़ा.

1960 के दशक में भी अमेरिका और इसराइल के रिश्तों में तनातनी दिखी. उस समय अमेरिका का कैनेडी प्रशासन इसराइल के गुप्त परमाणु कार्यक्रमों को लेकर चिंतित था.

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1967 में, इसराइल ने मात्र छह दिनों में जॉर्डन, सीरिया, और मिस्त्र को हरा कर अरब जगत के एक बड़े भू-भाग पर कब्जा किया, जिससे अमेरिका का दृष्टिकोण बदल गया. इसे तीसरा अरब इसराइल युद्ध भी कहा जाता है. इस जीत के बाद, अमेरिका ने इसराइल को अरब जगत में सोवियत संघ के ख़िलाफ़ एक स्थायी पार्टनर के रूप में देखना शुरू किया.

1973 की लड़ाई में भी इसराइल ने मिस्र और सीरिया को हराया. यह लड़ाई अमेरिकी निर्वाचन में आए समर्थन को बढ़ा दिया.

बराक ओबामा और नेतन्याहू के बीच मतभेद

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और इसराइल के मौजूदा प्रधानमंत्री नेतन्याहू के बीच मतभेदों की वजह से थोड़े समय के लिए अमेरिका और इसराइल के संबंध तनावपूर्ण दिखे थे.

दोनों में ईरान से न्यूक्लियर डील को लेकर टकराव दिखा

. ओबामा द्वारा प्रस्तावित डील का नेतन्याहू कड़ी आलोचना करते थे, जिसमें ईरान को न्यूक्लियर कार्यक्रम की प्रतिबंधन के बदले आर्थिक सैंकड़ों करोड़ डॉलर की राहत प्रदान करने की बात थी.

इसके बाद, अमेरिका ने ईरान से किया हुआ न्यूक्लियर समझौता त्याग दिया, जिससे इसराइल ने चिंता जताई कि ईरान न्यूक्लियर बनाने की क्षमता में सुधार होने की संभावना है.

इसके बावजूद, अमेरिका और इसराइल के बीच रक्षा सहयोग और अन्य कई क्षेत्रों में सहयोग जारी है, और वे साझा रुख और सुरक्षा चुनौतियों का सामना करते हैं.

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