नाजायज बच्चे का पैतृक संपत्ति में अधिकार होगा या नहीं ? सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला ।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें नाजायज बच्चे के पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी का मुद्दा उठाया गया था। इस मुद्दे के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण बहस को खत्म कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (26 जुलाई) को हिंदुओं से जुड़ा एक अहम सवाल उठाया: क्या शून्य विवाह (कानून के तहत गैरकानूनी) या अमान्य विवाह से पैदा हुआ बच्चा माता-पिता की संपत्ति का हकदार होगा या हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family) से संबंधित संपत्तियों पर उसका सहदायिक अधिकार होगा?
यहाँ पर हम आपको बताते हैं कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कैसा फैसला सुनाया है और इसके क्या महत्व है।
सहदायिक अधिकार का मतलब होता है वह अधिकार जो हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) में जन्म लेने के कारण पैतृक संपत्ति पर कानूनी अधिकार प्राप्त करता है। धारा 16(3) के तहत इस सहदायिक अधिकार का स्पष्टीकरण किया गया है कि ऐसे बच्चे का हिंदू अविभाजित परिवार के अन्य सदस्यों की संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं होगा।
इस फैसले के पीछे का कारण है कर्नाटक के एक ट्रायल कोर्ट का 2005 में दिया गया फैसला, जिसमें कहा गया था कि अवैध विवाह से पैदा हुए बच्चों का माता-पिता की पैतृक संपत्तियों पर कोई सहदायिक अधिकार नहीं है। हालांकि, कर्नाटक हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16(3) यह स्पष्ट करती है कि नाजायज बच्चों को केवल अपने माता-पिता की संपत्ति का अधिकार है, किसी और का नहीं।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी कहा गया है कि माता-पिता का निधन हो जाने पर हिंदू अविभाजित परिवार या पैतृक संपत्ति का बंटवारा हो जाता है तो नाजायज बच्चे को अपने माता-पिता को मिलने वाली संपत्ति के हिस्से में हिस्सा मिल सकता है, लेकिन उसके लिए एक कैविएट (चेतावनी) होनी चाहिए कि ऐसा अधिकार तभी मिलेगा जब ऐसे माता-पिता की मृत्यु बिना वसीयत के हुई हो।
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इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर सवाल उठाया है और नाजायज बच्चों के अधिकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। इस फैसले के बाद, यह स्पष्ट हो गया है कि इस तरह के बच्चों को सहदायिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा।
इस फैसले से हिंदी समाज में एक बड़ी बहस का समापन हो सकता है, और यह समझने में मदद कर सकता है कि कैसे नाजायज बच्चों के अधिकारों को साकार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय कानून के इस कठिन मुद्दे को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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